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Showing posts from July, 2015

याकूब को फांसी -- अंतरात्मा की हत्या

याकूब मेनन को मृत्यु दंड पर मुझे बहोत अपने देश की न्याययिक प्रक्रिया और बौद्धिकता पर अफ़सोस होने वाला है। मैंने यह पहले भी लिखा है, और आज भी वही दोहराता हूँ की न्याय ईश्वर की वाणी के समान दिव्य और निर्मल होना चाहिए। और जब कोई व्यक्ति अपने गुनाहों को अपने भीतर से स्वीकार कर लेता है तब उसमे ईश्वर की वाणी प्रबल हो चुकी होती है जो इस संसार में भी ईश्वरीय गुणों की रक्षा करती है।    याकूब ने स्वयं से समर्पण किया, और खुद से पाकिस्तान से भारत आ कर समर्पण किया था। मज़ाल की याकूब बंधुओं में से किसी एक को आज तक भारतीय पुलिस संस्था पकड़ पायी हो। याकूब ने स्वेच्छा से यह समर्पण करके अपनी अंतर्मन की शुद्धता का प्रमाण दिया है। आखिर न्याय का अंतिम चरम उद्देश्य यही हैं। यदि समाज को भय और अपराध मुक्त करना है तब ईश्वर के इसी अंश को प्रत्येक नागरिक में प्रज्वलित करना होगा। जहाँ यह प्रज्वलित हुआ है, उसे संरक्षण देना होगा। मज़ाल की '93 ब्लास्ट के बाकी बड़े नामी गुन्हेगार को मृत्यु दंड दिया हो। आखिर संजय दत्त को कितने वर्षों की सजा हुई और क्यों हुई यह सबको पता है। यदि याकूब अपने कर्म को हालात के मद्देज़र सही

येलो जर्नलिज्म -- एक्सक्लूसिव, विशेष और कैंपेन के पीछे के कूटनीति

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अगर टीवी पत्रकारिता में "येलो जर्नलिज्म"(yellow journalism) अपने को समझना है तो इन "एक्सक्लूसिव"(exclusive) और "मोर्चाबंदी /कैंपेन"(campaign) वाले कार्यक्रमों से रची गयी महिमा को समझिये।    येलो जर्नलिज्म की प्रकृति ही इन आचरण पर सिद्ध होती है की कहाँ टीवी जर्नलिज्म चुप रह जाता है, और कहाँ वह मोर्चाबंदी कर देता है। [yellow journalism= पैसा और धन के बल पर अपने पक्ष के समाचारों को बढ़ा चढ़ा कर प्रसारित करवाना, और अपने विरोधियों को संतुलित स्थिति से कहीं अधिक बदनाम करवाने वाले समाचार प्रसारित करवाना]

Linguistic Inability: Respectfulness or Courteousness ?

It was disheartening to listen to a lawyer's views who was teaching-talking to his class about being Respectful to seniors. The lawyer-cum-teacher spoke from his personal life experiences that respectfulness brings you a lot of success. Elaborating it further, he said that even where you have a Right - fundamental, legal, or moral- you should still be respectful, and instead of making a demand for enforcement of your right, you should make a request from your senior to please grant you that Right. I had a n intuitive feeling for long time that the legal academia in India is disturbingly poor. Today I was faced with one such product of the ruined education culture which perhaps has emerged from a combined effect of 1000 years of slavery, syncretic culture, as well as a generation of caste-based oppression. In my observations, the deepest damaging impact which the slavery, syncreticism and caste-based mutual oppression has left on our generation of citizens with is-- the Mutilated

प्लूटो ग्रह की समीप यात्रा

शासन शक्ति प्राप्त करने के लिए करी जाने वाली कुटिल प्रतिस्पर्धा  और अंतरिक्ष अनुसन्धान के मध्य एक समानता यह है की दोनों ही कार्य सम्पूर्ण अज्ञानता में आरम्भ करे जाते हैं।    प्लूटो गृह की मानव निर्मित यान द्वारा प्रथम समीप-यात्रा के दौरान एक बार फिर मनुष्य जाती ने अपनी अज्ञानत का बोध किया है। विशाल ब्रह्माण्ड में आज भी करीब करीब सारे ही छोर हमारे लिए अज्ञात और अचम्भे से भरे हुए हैं।   किसी भी अंतरिक्ष अनुसन्धान की नीव सर्वप्रथम किसी भी रोचक तथ्य के दृष्टिमान होने से होती है। उसके पश्चात, अपने द्वितीय कदम में अनुसंधानकर्ता उस रोचक तथ्य के इर्द गिर की तमाम अन्य जानकारियों को एकत्र करके हैं। इसके लिए वह अपने पास उपलब्ध तमाम वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करते हैं। जैसे की उस रोचक विषय वस्तु की तापमान ऊर्जा त्वरित कैमरों के द्वारा तसवीरें उतारना, सूक्षम कर्ण यंत्रों द्वारा उस विषय वस्तु के निर्माण तत्वों का ब्यौरा तैयार करना, उस विषय वस्तु की प्रचुरता को भूमंडल में तलाशना, उस विषय वस्तु से मिलते जुलते अन्य वस्तुओं का ख़ाका तैयार करना, यहां धरती पर उससे मिलते जुलते दृश्यों का एक ब्यौरा तैयार

क्या केमिकल लोच्चा है भक्तो की बुद्धि में -1 ...!

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कहीं कुछ तो "कैमिकल लोच्चा" है भक्तों की तर्क बुद्धि में। वह विपरीत मायने वाले तर्कों को एक साथ अपने तीरों के तुरिण में रखना चाहते हैं।     अब इस स्वच्छता अभियान को लीजिये। कांग्रेस के कार्यकाल में भी टीवी पर नागरिकों को स्वच्छता का पाठ देने के लिए जनहित सूचना प्रचार आया करते थे। फिर क्या हुआ, ज़रा गौर करें...      नरेंद्र भाई के प्रधानमंत्री बनते ही भक्तों ने यहाँ पर एक अजीबोगरीब तर्कों वाली कारीगरी करी हैं। पहले तो, 02 अक्टूबर 2014 को नरेंद्र भाई ने स्वच्छता अभियान छेड़ा। अब इस अभियान के तहत नागरिकों को पाठ और प्रेरणा देने की बजाये "टैग" करने का चलन निकाला गया, कि जिसको जिसको टैग किया गया है वह जाकर खुद झाड़ू उठा कर लगाये। चलिए ठीक है..    हद तब हो जाती है जब नरेंद्र भाई के भक्त नागरिकों की कूड़ा फेकते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर डालने लगते हैं , नरेंद्र भाई के बचाव में टिप्पणी लिखते हुए कि देखिये नरेद्र भाई अकेला क्या क्या करेगा !     बात कुछ ऐसी हो गयी की किसी अबोध बालक को जब पढ़ना लिखना सिखाया जा ही रहा था, तब शिक्षका के स्थानांतरण के पश्चात अचानक से बालकों की

(भाग 2)क्या केमिकल लोच्चा है भक्तों की बुद्धि में -.....!!

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अब यह "केमिकल लोच्चा" वाले भक्तों की बुद्धि में भाजपा के नागरिकों को स्वावलंबी बनने के पाठ को देखिये।    आरम्भ से ही भारत गुलामी के दौर से निकला एक गरीब देश रहा है। कांग्रेस पार्टी ने तो 60 साल गरीबी हटाओ नारे के तहत ही सारे भ्रष्टाचार कर्मकाण्ड कर डाले हैं।      ज़रा गौर करें की अब भाजपा और नरेंद्र भाई अपने युग में इस गरीबी हटाओ को किस तर्को में प्रस्तुत कर रहे है। यहाँ गरीबी का निपटारण करने की बजाये गरीबी का छींका नागरिकों के सर पर फोड़ देने का प्लान है। भाजपा शायद यह तर्क प्रस्तुत करना चाहती है की गरीबी इस वजह से है की नागरिक वर्ग आलसी है, मेहनत से दिल चुराता है, कामचोर है, मुफ्तखोरी करना चाहता है। यानि, भाजपा के तर्कों में देश में व्याप्त गरीबी का कारण प्रशासन की असफलता और व्यापक भ्रष्टाचार नहीं है..बल्कि नागरिक खुद ही हैं।

आरएसएस, भाजपा समर्थक, और मोदी भक्तों की मनोवृति को पालने वाली भूमि

आरएसएस द्वारा संचालित विद्यालयों की श्रृंखला, सरस्वती शिशु मंदिर , के अंदर के माहोल के बारे पढ़ कर बहोत कष्ट हुआ। वैसे भाजपा समर्थक , मोदी भक्त और आरएसएस के लोगों के तर्क, विचार और दृष्टिकोण को देख-समझ कर मुझे पहले ही संदेह हो रहा था की किसी असामाजिक, कट्टरपन्ति मानसिकता के परिणाम में ऐसे लोग इतनी बड़ी जनसँख्या में इस देश में खड़े हैं, और वह भी प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों तक पहुँच चुके हैं। एक सुनियोजित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से ही दुनिया के तमाम बदलावों को दरकिनार करके, विभिन्न धर्मों की नैतिकता और मूल्यों को धात दे कर ऐसी कुटिल(crooked) मानसिकताओं को प्राप्त किया गया है।        गर्व और अभिमान में अंतर होता है। जो आरएसएस का प्राचीन वैदिक धर्म के बारे में दृष्टिकोण है वह अभिमान है, गर्व नहीं। आरएसएस की स्थापना और मुख्य सञ्चालन जाती-ब्राह्मणों के हाथों में रहा है, जो की स्वयं को दूसरे वर्णों से अधिक श्रेष्ट, बुद्धिमान और सिद्ध मानते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वह वर्ग जो की खुद अभिमान नाम के मनोविकार से पीड़ित लोग हैं। तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए की उनकी संस्थाओं ने भी जिस रूप के

राजनीती और भाषाविज्ञान का सम्बन्ध

राजनीति छल और कपट से भरी हुई होती है। राजनीति करने में भाषा का बहोत योगदान होता है। राजनैतिक कुटिलता करने के लिए भाषा के साथ उलट फेर करने में आपको प्रवीण होना चाहिए। सफल राजनीति की बुनियाद कुटिल भाषा के प्रयोग से ही बनती है जो की भाषणों के द्वारा जनता के बीच प्रवाहित करी जाती है।     अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ओस्वेल ने अपना एक सुप्रसिद्ध निबंध, "Politics and the English Language"( राजनीति और अंग्रेजी भाषा) , को शासन शक्ति के आपसी संघर्ष के दौरान हुए छल-कपट तथा भाषाविज्ञान के बीच सम्बन्ध को उजागर करने के लिए ही लिखा था।     असल में शब्द विचार में 'राजनीति' का अर्थ भी गलत तरीके से जनता के संज्ञान में डाला जा चुका है। हम अपने इर्द-गिर्द जिसे देखते और आभास करते है, "शासन शक्ति के आपसी संघर्ष के दौरान हुए छल-कपट", वह राजनीति नहीं वरन कूट अभ्यास, या कूटनीति(realpolitik), पुकारा जाना चाहिए। राजनीति का शाब्दिक अर्थ होता है ''अच्छा , सुशासन चलाने वाली नीति"। जाहिर है की जनता को छल, कपट और 'उल्लू बना कर' प्राप्त करी गयी शासन शक्ति से आये व्यक्ति उस