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Showing posts from June, 2015

मुद्रा सर्वश्रेष्ठता के प्रत्यय से आधुनिक शिक्षा प्रणाली का मुआयना

ब्रिटिश, अमेरिकी और पश्चिम देशों के वीसा वितरण/ नागरिकता प्रदान के तरीकों में एक विशेष चलन को महसूस किया जा सकता है। वह यह है की जिसके पास धन है उसे यह देश ज्यादा आसानी से वीसा या अपनी नागरिकता प्रदान करते हैं। चाहे वह धन जायज़ तरीके से कमाया गया हो, या नजायज़ । इसमें बुद्धिमता, शारीरिक क्षमता, सामाजिक पद, इत्यादि किसी को भी उन्होंने महत्वपूर्ण नहीं माना है। सिवाय धन, आर्थिक स्थिति के।      इस नीति के पीछे का स्वीकृत सिद्धांत यह माना गया है की जिसके पास धन है, औसतन वह बेहतर पहुँच रखता है अच्छी और उच्च शिक्षा तक; अच्छी और बेहतरीन स्वास्थ सुविधाओं तक, और इन दोनों के नतीजे में -- अच्छे सामाजिक पद तक।      फिर धन प्राप्त करने के तरीके में जायज़ होना या नाजायज होना एक अस्थाई हालात हैं, समय और सामाजिक पद से सामाजिक और वैधानिक मान्यताएं बदलती रहती है--जो आज नाजायज़ है, वह कल जायज़ बनाया जा सकता है।   पैसा का इस कदर की प्रधानता आरम्भ में मुझे आश्चर्यचकित करता था, मगर अब धीरे धीरे मैंने भी कुछ हद तक, पूरा तो नहीं,स्वीकार कर लिया है की पश्चिमी देशों की यह नीति इतनी गलत नहीं है। गौर करने की बात यह

समाचार प्रसारण उद्योग में 'सुपारी जर्नलिज्म' का चलन

अंग्रेजी समाचारपत्रों , विशेषकर की Times Of India, का आचरण उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और उनके मुख्य मंत्री अखिलेश यादव के लिए "सुपारी पत्रकारिता" वाला प्रतीत होता है।     इस समाचार पत्र को मैंने बार-बार उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार और अखिलेश यादव के लिए campaign उठाते देखा है जबकि दूसरे प्रदेशों में घटी सामानांतर घटना में यही अख़बार इस प्रकार का कोई campaign नहीं रचता है।   सुपारी जर्नलिज्म का प्रकार campaign के प्रयोगों के द्वारा होता है। campaign अक्सर कर के जन संवेदनशीलता और चिंता की घटनाओं पर रचे जाते हैं। मगर सुपारी जर्नलिज्म के दौरान राजनैतिक पार्टियां अपने विरोधी की जन छवि धूमिल करने के लिए अक्सर बिकाऊ, वैश्य समाचार सूचना कंपनी को गुप्त भुगतान करती है। अंग्रेजी अख़बार का समाजवादी पार्टी के लिए सुपारी जर्नलिज्म दिखाई देता है।     अभी हाल में घटी मेरठ के पत्रकार की मृत्यु का मामला लिजिये। अपने खुद के अनुभव से यह आभास होगा कर्णाटक में युवा ias अधिकारी dk रवि का मामला इससे कही ज्यादा गंभीर था क्योंकि वहां इस काण्ड में उनकी पुलिस और मुख्यमंत्री तक ने सभी ने मिल बाँट

आम आदमी पाटी का दिल्ली पुलिस के हाथों उत्पीड़न

भारत में पुलिस को लतखोरी को आदत लग चुकी है। पुलिस वाले नेताओं की दबंगई की लात बहोत स्वाद से खाते है, क्योंकि बदले में वह यह लात आम जनता पर जमाते हैं।   दिल्ली पुलिस इस कुचक्र में कोई अपवाद नहीं है। इसलिए यदि हमें वाकई में दिल्ली पुलिस को सुधारना है, और दिल्ली को विश्व में एक श्रेष्ठ राज्य बनवाना है तब सबसे प्रथम हमें दिल्ली पुलिस की नेताओं की दबंगई की लात खाने वाली आदत छुड़वानी होगी। दिक्कत यह है की भारत में संविधान और नियम व्यवस्था ही इस चक्र से गढ़ गयी है की पुलिस या किसी भी जांच संस्था और शक्ति बल को नेताओं के चंगुल से आज़ाद करवाना आसान नहीं है।  आप ज्यों ही इस संस्थाओं की स्वायत्ता की बात करेंगे, त्यों ही नेता लोग इस संस्थाओं के प्रजातान्त्रिक जवाबदेही का प्रश्न खड़ा करके इन्हें वापस किसी न किसी जन प्रतिनिधि के आधीन लाने का मार्ग बना देते है। अब दिक्कत यह बनती है की प्रश् यह भी जायज़ है की सेनाओं और पुलिस बल का जनता के प्रति जवाब देहि तो होनी ही चाहिए।    कुछ विद्वानों ने एक दूसरा मार्ग यह प्रयास किया की क्यों न किसी एक नेता के स्थान पर सम्पूर्ण संसद को ही सशस्त्र सेना अथवा पुलिस बल क

आरएसएस और भाजपा नेताओं का अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था से गुप्त प्रेम

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सुषमा स्वराज की बेटी खुद ऑक्सफ़ोर्ड से पढ़ लिख कर आई है...वह आरएसएस छाप किसी ऐरु-गेरू "सरस्वती शिशु मंदिर" से शिक्षा क्यों नहीं प्राप्त करती..इसके कारणों का विमोचन करना हमें देश में सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों को समझने में बहोत मदद करने वाला है..   मगर इस विमोचन से पहले हमें नरेंद्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद की कुछ और घटनाओं को स्मरण करना होगा जो की हमारे को विमोचन में योगदान देने वाली है...   सबसे पहले तो उस समाचार सूचना को स्मरण करें जिसमे गुजरात की शिक्षा बोर्ड की पुस्तकों में गांधी जी, द्वितीय विश्व युद, इत्यादि के बारे में ताथयिक गलत ज्ञान प्रचारित किया जाता है।    फिर मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद की इंडियन science कांग्रेस के अधिवेशन को याद करें जिसमे किसी आरएसएस समर्थित वक्त ने भारतीय पौराणिक "इतिहास" की व्याख्या में विमान और अंतरिक्ष अनुसन्धान का "पौराणिक भारतीय इतिहास"  बताया था । इस अधिवेशन को खुद नरेंद्र मोदी ने बतौर भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उपस्थिति दर्ज़ करी थी। जबकि विदेशी अखबारों में इस प्रकार के वैज्ञानिक "