राष्ट्रवाद/देशभक्ति की भावनाओं का कूटनैतिक उपभोग

(सन्दर्भ: केंद्र सर्कार का सर्वोच्च न्यायलय में दिया प्रश्नोतर की वह पाकिस्तान में कैद भारतीय युद्ध बंधकों को छुड़वाने के वास्ते किसी भी अंतराष्ट्रीय न्यायलय अथवा संस्था से हस्तक्षेप नहीं करवा सकते हैं।)

बड़ी बात यह नहीं है की मोदी-भाजपा की सरकार उन्हीं लोगों की है जो विपक्ष में रहते हुए मनमोहन-कांग्रेस की सरकार को कमज़ोर राष्ट्रवाद और कमज़ोर देशभक्ति के लिए कोसते नहीं थकते थे, उनकी पाकिस्तान और सैन्य नीतियों के लिए।
   
   बड़ी बात तो तब होगी जब देश की जनता को भारत-पाकिस्तान कश्मीर विवाद के वे अनबुझे पहलू समझ आने लगेंगे जिनकी वजह से हमारे देश के प्रत्येक राजनैतिक दल केंद्र सरकार में आने पर पाकिस्तान मामलों में एक जैसा आचरण करने को बाध्य रहता है, विपक्ष में वह दल भले ही जितनी भी "देशभक्ति/राष्ट्रवाद" के ढिंढोरे पीट ले।
     बड़ी बात तो तब होगी जब इस देश की जनता 'राष्ट्रवाद/देशभक्ति' के विचारों को अंतर करना सीख लेगी किन्ही पशु जगत की इलाके(के भोजन स्रोत और मादाओं पर एकाधिकार) की आपसी लड़ाई से।
   बड़ी बात तो तब होगी जब देश की जनता को समझ आ जायेगा की घरेलू कूटनीति में देशभक्ति/राष्ट्रवाद का ढिंढोरा असल में सिर्फ भावनाओं को भड़का कर वोट बटोरने के लिए ही हो रहा है।

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