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Showing posts from September, 2015

अभिमान का आत्म-मोह सुख, वास्तविकता भंगिता क्षेत्र और राजनैतिक चुनाव

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Visits as these, where he gets a Rock Star treatment, supply feed to some people's Narcissist pleasure of pride.  They get reinvigorated and take up a belief that our country is doing well, disregarding the actual ground conditions. The charmer is able to set up his Reality Distortion Field (RDF) with enhanced strength, which in turn helps him at the elections at hand.     इस प्रकार की विदेश यात्राताएं जिसमे की इनको किसी फिल्मी सितारे का अभिनन्दन दिया जाता है, एक भोजन देता है बहोत सारे व्यक्तियों के आत्म-मोह अभिमान सुख को। भोजन मिलाने से अभिमान सुख में नयी शिक्ति का प्रसार होता है, और एक नए सिरे से ऐसा अनुभव मिलता की मानो देश में सब कुछ कुशल-मंगल हो रहा है, वह वास्तविकता से भंगित हो जाता है। जादूगर नयी ऊर्जा के साथ अपने सम्मोहन का "वास्तविकता भगिता क्षेत्र" रच लेता है, जिसके प्रभाव से उसे अभी निकट भविष्य के चुनावों में सहायता मिलती है।

वकील और न्यायधीशों में बौद्धिक गुणवत्ता की कमी है।

(व्यक्तव्य: 20 सितम्बर के समाचारों से सम्बंधित) वकील और न्यायधीशों में बौद्धिक गुणवत्ता की कमी है। 1)   ओला कैब टैक्सी प्रकरण में पीड़ित पक्ष ने एक याचिका डाली थी की वह गवाहों का मुआयना फिर से करवाना चाहते हैं क्योंकि पहले वाले वकील की काबलियत पर उन्हें शक हो रहा है कि वह अभयुक्त को उचित सजा नहीं दिलवा पायेगा।     इस याचिका के प्रभाव में कोर्ट ने बार कॉउंसिल को निर्देश दिए हैं की वह देश भर में अपराधिक मामलो के वकीलों की समय-समय पर अपनी क़ाबलियत प्रमाणित करवाने के लिए वकालत के पेशेवर नियमों में सुधार करे।      2)  कोर्ट ने हाल ही में एक फैसला दिया है कि भ्रष्टाचार मामलों में सिर्फ रिश्वत की रकम की प्राप्ति पर्याप्त सबूत नहीं माना जा सकता है किसी सरकारी बाबू के भ्रष्टाचार को प्रमाणित करवाने के लिए। काफी सारे 'भ्रष्टाचार-विरोधियों-के-विरोधी' इस फैसले से हर्षित नज़र आये की चुनावी राजनीति में जो लोग लोकपाल विधेयक जैसी नीतियों की भ्रष्टाचार का रामबाण समझ रहे थे उनकी अकल खुलेगी की भ्रष्टाचार प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। असल में यह भ्रष्टाचार-विरोधियों-के-विरोधी खुद ही न्यायालय की

मीडिया का उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार से बैर भाव

(व्यक्तव्य:  21 सेप्टेम्बर के समाचारों से) इंग्लिश समाचार मीडिया प्रत्यक्ष तौर पर उत्तर प्रदेश की मुलायम -अखिलेश सरकार के पीछे पड़ा है। आज एक खबर, कि पिता मुलायम सिंह ने पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश की राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए आलोचना करी, को भी इंग्लिश मीडिया ने मरोड़ कर पेश किया की उत्तर प्रदेश् में इस कदर कुप्रशासन चल रहा है ।    मगर यही मीडिया मध्यप्रदेश के झबुआ में हुआ बम धमाके में जिस कदर चुप है, और किसी भी कुप्रशासन की बात नहीं करता, यह प्रत्यक्ष हो गया है की मीडिया द्वारा "कुप्रशासन" शब्दावली अब उत्तर प्रदेश के अखिलेश सरकार के लिए "आरक्षित" कर दिया गया है।    अब अगर उत्तर प्रदेश में भैस ने गोबर भी कर दिया तो उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार का "कुप्रशासन" माना जायेगा, भले ही इंदौर में कोई रोड कांट्रेक्टर किसी गड्ढे में बेहोश पड़े व्यक्ति को रोड निर्माण कार्य के समय "अनजाने" में मिटटी से पाट कर उसकी जान ले ले। या फिर कि, बंगलोरे में कोई मोटर साईकिल पर सवार दंपत्ति में पत्नी किसी सड़क के गड्ढे में गिर कर जान गँवा बैठे, और इस हादसे की

निश्चयकृत सुधार नीति का विश्वव्यापक उपयोग

Affirmative Action यानि निश्चयकृत सुधार नीति,  जिसका एक उदाहरण आरक्षण नीति है, दुनिया के तमाम देशों में प्रयोग किया जाता है।          इंटरनेट सोशल मीडिया में कई सारे पोस्टर आरक्षण नीति का विरोध करते हुए अवधारणाओं को जन्म दे रहे हैं। मिसाल के तौर पर एक पोस्टर में दिखाया गया है की कैसे भारत में प्रयोग होने वाली आरक्षण नीति हमारे देश से बौद्धिकता पलायन (brain drain) का कारक साबित हो रही है जिससे की अमेरिका जैसे देश अन्यथा लाभान्वित हो रहे हैं। इस पोस्टर में दिखाए गए विचार के विपरीत अमेरिका खुद भी किसी न किसी प्रकार में एक निश्चयकृत सुधार नीति का प्रयोग करता है। तो यह पोस्टर सरकरी लक्ष्यों के विपरीत विचार को प्रसारित करता है, हालाँकि की यह कहना अनुचित होगा की कोई बाँधा पहुचता है।     अगर भारत में प्रयोग होने वाले जाती-गत आरक्षण को एक समग्र रूप में समझे तो हम पाएंगे की दुनिया के तमाम देशों में उनकी सरकारें किसी मानववर्ण(ethnic), कायावर्ण(racial), लिंगवर्ण(gender) , क्षेत्र-वर्ण (regional), शारीरिक क्षमता वर्ण(physical capacity), आर्थिक वर्ण(economic), सांस्कृतिक वर्ण(cultural), इत्यादि क

चाय वाला "छोटू".... असफल भारत का एक व्यक्ति नहीं, एक सोच है

(काल्पनिक कथा) एक चाय वाले 'छोटू' से यूँ ही पूछ लिया की अगर तू बड़ा हो कर देश का प्रधानमंत्री बन गया तब क्या करेगा । चाय वाला बोला की वह बरी बरी से दुनिया के सभी देश जायेगा।    मैंने पुछा की इससे क्या होगा ? छोटू ने कहा की इससे हमारे देश की सभी देशों से दोस्ती हो जायेगी, हमारा रुतबा बढेगा और वह सब हमारी मदद करेंगे पाकिस्तान को हराने में।     मैंने पुछा की क्या किसी और सरकारी अफसर या मंत्री को भेज कर यह नहीं किया जा सकता है ? छोटू बोला की साहब, किसी छोटे मोटे नौकर के जाने से दोस्ती न हॉवे है, इसके लिए तो प्रधानमंत्री की खुद जावे को होना है।    मैंने पुछा की तब देश के अंदर का काम कौन करेगा ?   छोटू ने तुरंत जवाब दिया की वह सरकारी अफसर और बाकी मंत्री देख लेवेंगे।    मैंने पुछा की अगर यूँ ही किसी के देश में बिना किसी काम-धंधे के जाओगे तब हंसी नहीं होगी की यहाँ का प्रधानमंत्री फोकटिया है, बस विदेश घूमता रहता है।    छोटू ने कटाक्ष किया की ऐसा कोई नहीं सोचेगा। जब हम किसी के यहाँ जाते है तभी तो उससे हमारी दोस्ती होती है। अगर सिर्फ काम पड़ने पर ही किसी के यहाँ जाओगे तो वह क्या स

भ्रष्टाचार-विरोधी का विरोध करने की युक्तियाँ

  (दो-तीन वर्षों से चल रहे इस भ्रष्टाचार विरोध की मुहीम को देखते हुए कुछ सबक लेनी की सोची।। नीचे इन्ही सबक से रचित एक अध्याय है।) प्रत्यक्ष विचार है की कोई भी व्यक्ति खुद को भ्रष्टाचार का सयोजक, तरफदार नहीं दिखाना चाहेगा। मगर फिर ऐसे में किसी भ्रष्टाचार विरोधी का सामना कैसे करेगा? कुछ युक्तियाँ अभी भी है भ्रष्टाचार-विरोधियां का विरोध करने की :- फार्मूला नंबर  1 1) उनका उपहास बनाओं।     जैसे की " अबे ओ, राजा हरिश्चंद्र की औलाद", " बस तुम ही तो ठहरे दुनिया के अकेले ईमानदार", " हमें तुमसे अपनी ईमानदारी के सर्टिफिकेटे की ज़रुरत नहीं है" फार्मूला नंबर 2 2) ईमानदारी को पराजय का पर्याय दिखाओ     जनता में ईमानदारी के नुकसान और पराजय के विचार को प्रसारित करवाओ। फिल्में इत्यादि इस काम को बहुत ही धूर्त चपलता से प्रस्तुत करती है।फिल्मों में यदि अंत में ईमानदार की जय दिखाई भी जाती है तो तब वह किसी असंभवि, चमत्कारी, सुपरमैन, फौलादी शक्ति से प्राप्त करी हुयी दिखाई गयी होती है। इससे जनता में जो छवि, सन्देश जाता है वह यह की वास्तव ज़िन्दगी में तो ऐसा संभव नहीं है, इस

The genetically wicked BJP

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आरक्षण विरोध: सामाजिक अनुबंध को तोडने का मार्ग ही क्यों?

कानून अक्सर करके एक सामाजिक अनुबंध होता है। आरक्षण और कश्मीर को विशेष स्थिति के कानून एकतरफा कानून ही सही, कुछ ऐसे ही सामाजिक अनुबंध है जो की अपने समय की उन विशिष्ट परिस्थितियों में घटे एक दूसरे से किये हुए कुछ कसमें-वादे है जिनको हमने कई पीढ़ियों तक एक-दूसरे से निभाने के कसम रखी थी। यह कानून उसी सामाजिक कस्मे-वादे को चिरकाल तक याद दिलाने के लिए लिखे हैं। इन कसमों-वादों से आज़ाद होने का तरीका भी इन्ही में लिखा हुआ है। फिर ऐसा क्यों की आज बातचीत इस कसमो वादों की तोड़ने की हो रही है, बजाये की इनमे लिखी इनसे आज़ादी की शर्तों को पूरा करने का रास्ता ढूढ़ने के? क्यों सारी बातचीत वोट की राजनीति में तब्दील हो गयी है की X को वोट दो , वह ही आरक्षण को ख़त्म करेग और दफा 370 को भी ख़त्म करेगा। यह कैसी नैतिकता है की मतलब निकल जाने पर अपने कस्मे-वादे तोड़ने पर उतर आते है बिना किसी संकोच और शर्म के ? क्या यह धूर्त व्यवहार नहीं है ?

The abuse of Management quotes

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Debate: Should death penalty be abolished ?

The one single cause why I would not advocate an abolishment of Death Penalty is, if our Criminal Justice system is not perfect enough to award a death penalty with requisite accuracy, then so is our social structure, our governance structure and our sciences and technology .       These all are imperfect and thereof providing a conciliatory justices for each other's imperfections.         The society is full of criminals of various kinds. Some of them have a self-destructive inspiration for doing a extreme wrong. Others have psychological ill to be unable to reign on ownself to Commission a wrong. Our executive and political systems are not strong enough to prevent such a wrong of a mass scale which can upheaval a normal functioning society. Our medical science is not advanced enough to forewarn us of a developing mental-illness within some private individual, nor it is good enough to provide a conclusive cure which maybe applied afterwards.Why, then, should the judicial system

राष्ट्रवाद/देशभक्ति की भावनाओं का कूटनैतिक उपभोग

(सन्दर्भ: केंद्र सर्कार का सर्वोच्च न्यायलय में दिया प्रश्नोतर की वह पाकिस्तान में कैद भारतीय युद्ध बंधकों को छुड़वाने के वास्ते किसी भी अंतराष्ट्रीय न्यायलय अथवा संस्था से हस्तक्षेप नहीं करवा सकते हैं।) बड़ी बात यह नहीं है की मोदी-भाजपा की सरकार उन्हीं लोगों की है जो विपक्ष में रहते हुए मनमोहन-कांग्रेस की सरकार को कमज़ोर राष्ट्रवाद और कमज़ोर देशभक्ति के लिए कोसते नहीं थकते थे, उनकी पाकिस्तान और सैन्य नीतियों के लिए।        बड़ी बात तो तब होगी जब देश की जनता को भारत-पाकिस्तान कश्मीर विवाद के वे अनबुझे पहलू समझ आने लगेंगे जिनकी वजह से हमारे देश के प्रत्येक राजनैतिक दल केंद्र सरकार में आने पर पाकिस्तान मामलों में एक जैसा आचरण करने को बाध्य रहता है, विपक्ष में वह दल भले ही जितनी भी "देशभक्ति/राष्ट्रवाद" के ढिंढोरे पीट ले।      बड़ी बात तो तब होगी जब इस देश की जनता 'राष्ट्रवाद/देशभक्ति' के विचारों को अंतर करना सीख लेगी किन्ही पशु जगत की इलाके(के भोजन स्रोत और मादाओं पर एकाधिकार) की आपसी लड़ाई से।    बड़ी बात तो तब होगी जब देश की जनता को समझ आ जायेगा की घरेलू कूटनीति में देशभ