तर्कों पर आधारित न्याय एक खुल्ला न्यौता है मूर्खता को सर्वव्यापक बनाने का

किसी भी राष्ट्र के लिए दुखद स्थिति तब आती है जब उसका पढ़ा लिखा बुद्धि जीवी वर्ग ही इतना अयोग्य हो जाता है की उचित और अनुचित के मध्य भेद करने लायक नहीं रह जाता है।
  राजनीति के प्रभाव में अधिक काल तक जीवन यापन करने से ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है। जब कभी मतभदों के कारण न्याय लंबे समय तक सर्वज्ञात और सर्वमान्य होना बंद हो जाता है, तब न्याय नष्ट ही होने लग जाता है। नैतिकता भ्रमित होने लगती है, और वह भी कमज़ोर हो जाती है।  तब अंतःकरण कमज़ोर हो जाता है , क्योंकि मनुष्य आपसी प्रतिस्पर्धा, कूटनीति में एक दूसरे पर विजय पाने के लिए कुछ भी कर्म को विजय के धेय्य से उचित अथवा अनुचित ठहराने लगता है। कूटनीति के कर्म हमारे भीतर के ईश्वर के अंश को, हमारे अंतःकरण को ही नष्ट कर देते हैं। हमारा  मस्तिष्क तब सिर्फ तर्कों के आधार पर निर्णय करने लग जाता है। तर्क (logic) के आधार पर न्याय का लाभ यह है की तर्क (तकनीकी ज्ञान, टेक्नोलॉजी, इत्यादि) व्यक्तिगत से मान्यताओं और विश्वासों से मुक्त होते है, और इसलिए आसानी सर्वमान्य हो जाते है। मगर तर्कों के आधार पर न्याय करने का नुक्सान भी है। वह यह की तर्क में कुतर्क(sophistry), भ्रम और भ्रांतियों (logical fallacies) के लिए खूब अवसर होता है, जिसमे आसानी से एक समूची आबादी को ही धोखा दिया जा सकता है, मूर्ख बनाया जा सकता।
  तर्कों के अधिक प्रयोग से उत्पन्न हानि से बचने का समाधान यह है की अंतःकरण का भी प्रयोग किया जाये।
   अंतःकरण को अधिक विक्सित और कुशल बनाने में मानववादी विषय ज्ञान (humanities) बहोत सहायक होते है। इतिहास, भाषा ज्ञान, समाजशास्त्र, न्याय -कानून, साहित्य , कला (liberal arts), नागरिक शास्त्र, राजनीति विज्ञानं, प्रशासन विज्ञानं, दर्शन शास्त्र में प्रवीण व्यक्ति से अधिक अपेक्षा होती है की उसका अंतःकरण अधिक समग्र और विक्सित होगा। शायद वह मन-मस्तिष्क को संकीर्ण बना देने वाली कूटनीति से मुक्त होगा और अधिक विक्सित अंतःकरण की ध्वनि के कारण न्याय, सत्य करण कर सकने में अधिक् सक्षम होगा।

  Jagdish Prakash जी अब क्योंकि आप भी साहित्य और लेखन के  विषयों में प्रवीण है , इसलिए मेरी भी आपसे अपेक्षा है की शायद आप सत्य और न्याय का समर्थन करेंगे।

Comments

Popular posts from this blog

The Orals

Why say "No" to the demand for a Uniform Civil Code in India

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs