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Showing posts from December, 2014

Sophistry and the BJP

Sophistry is an art of arguing where the purpose of discussion is not about Finding the locus of Truth, doing the justice, exploring the morality, et al.   In Sophistry, the sole motto of involving in an argument is to win it away ,by any means, hook or crook. In ancient Greece, the distractors of Aristotle were called as Sophist. Mind it that in his times,Aristotle was not so much a revered person as he become later in history. People despised Aristotle for asking too many questions, being highly judgemental, and behaving finicky. Nobody could easily win arguments against Aristotle. Then came the Sophist people. It is not exactly known if the word Sophist came from some particular person, but now the word is used as a Collective noun. These are people whom even Aristotle had begun to avoid arguing with,for they had developed range of Arguments by which they could defeat anything and anybody at their will. Aristotle discovered the lack of Universality in their arguments, and knew

भाजपा में ब्राह्मणवादी हिंदुत्व और प्रवृत्तियां

1)खड़मास की वजह से छत्तीसगढ़ के नवनिर्वाचित भाजपा के मुख्यमंत्री राघुवर दास ने शपथ ग्रहण को टाल दिया था।(स्रोत: समाचार पत्र टाइम्स ऑफ़ इंडिया) 2) मानव संसाधन राज्यमंत्री श्रीमती स्मृति इरानी ने अपने निजी ज्योतिष के साथ 4लम्बे घंटे व्यतीत किये। 3)भाजपा में कूट-वैज्ञानिक आचरण ( pseudo-scientific) , वह जो वैज्ञानिक होने का छलावा करता हो) होने के आरोप पर भाजपा समर्थकों ने आम आदमी पार्टी के शीर्ष अरविन्द केजरीवाल की इस्लामी और सूफी मजारों पर चादर चडाने वाली पिक्चरें प्रकाशित करी, शायद यह जताने के लिए की केजरीवाल "sickular" हैं। 4)  आरंभ के दो बिन्दों को तीसरे बिंदु से जोड़ने पर निष्कर्ष यही निकलता है की भाजपा समर्थकों में 'ईश्वरियता' और 'अंध-विश्वासों में मान्यता' के मध्य भेद कर सकने की योग्यता आज भी विक्सित नहीं है। और इसके प्रमाण-लक्षणों में निम्न तीन बिंदु हैं: 5) पाखंडी आसाराम बापू, बाबा रामपाल के अधिकाँश पालक भाजपा के भी समर्थक हैं ,और इन्हें लगता है की भाजपा ही इन "संतों" को पुलिस से बचा कर "हिंदुत्व" की रक्षा कर सकती है। 6) बॉली

भारत रत्न पुरस्कार और इससे बढ़ती हुई राजनैतिक सरगर्मी

ऐसा नहीं था की आज़ादी से पहले दिवंगत महापुरुषों की उपलब्धियों को नकार देना का इरादा था, मगर फिर समझदारी इसी में थी की दिवंगत लोगों को भारत रत्न दे कर असुविधाओं का पिटारा नहीं खोलना चाहिए था।    नोबेल शांति पुरूस्कार में भी मरणोपरांत यह पुरुस्कार नहीं दिए जाने की प्रथा इसी कारण से हैं। खुद ही सोचिये, यदि आप मरणोपरांत लोगों को भी कोई सर्वोच्च पदक देना चाहेंगे, तो क्या रानी लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे, टीपू सुलतान, सम्राट अकबर और उससे भी पूर्व सम्राट अशोक इस पदक के हक़दार नहीं थे ??    पंडित मदन मोहन मालवीय जी का निधन ही आज़ादी से पूर्व हो चूका था। जब भारत रत्न पदक की स्थापना भी नहीं हुई थी,मालवीय जी अपनी उपलब्धियों को दर्ज करके जा चुके थे। अब ऐसे में भाजपा को यह राजनैतिक कशमकश मचाने की क्या आवश्यकता थी कि मरणोपरांत के भी अति श्रेणी में जा कर, स्वतंत्रता पूर्व ही दिवंगत हो चुके महापुरुषों को भी यह पदक प्रदान करवाए।    किसी भी समाज सेवी श्रेणी का पदक का उत्तराधिकारी चुनना वैसे भी बहुत ही व्यक्ति-निष्ठ काम है जिसमे की जन संतुष्ठी कम,और मत-विभाजन अधिक होता है। जहाँ मत विभाजन है ,वहां "र

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता

सही और गलत, उचित और अनुचित , मानवता या स्वार्थ के ताने बाने में फँसा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बेहद दो-मुंह सर्प हो गया है। बल्कि मुझे तो संघ और उसकी संसथायों में दो-मुँहे तर्क ब्राह्मणवाद,जात पात और छुआछूत की स्मरण दिलाते है की कैसे प्राचीन वैदिक धर्म ने अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे दुर्गुणों का क्षेत्र रक्षण किया होगा और आज के इस अंधकारमई , नाले के सामान मैली गंगा वाले "हिन्दू धर्म" में तब्दील कर लिया होगा।भाजपाइयों की क्षेत्र रक्षण की पद्धति से आप कितनों ही गलत कर्म क्यों न करे हो,उसका बचाव कर सकते हैं।    भाजपा के दोमुंहे तर्कों पर निरंतर दृष्टि रखिये और विचार करिए कैसे भाजपाई विज्ञापन और प्रचार में केजरीवाल की दुबई और अमेरिका यात्रा को "भीख माँगने" ,"मुजरा करने" जैसे अपमानजनक व्यक्तव्यों से दर्शाता है, और मोदी की मौज मस्ती की अमेरिका यात्रा और विदेश यात्राओं को "विजयी यात्रा" ,"दुश्मन ने घुटने टेक दिया", जैसे व्यक्तव्यों से दर्शाता है।   खुद वेदान्त समूह से चन्दा लेने वाला ,आप पार्टी पर विदेशी जासूसों का एजेंट होने का मिथ्य-आरोप ल

Fanaticism, political exploitation and Emotional distress

The problem of the fanatic cults is that whenever their eyes become forced to see into the mirror, they manage to switch off the minds by taking recall of some past incidents when they were the victims. Perhaps the better way of identifying who should we call a Fanatic is by determining who is it who is striving to SWITCH OFF THE MINDS by taking any impertinent recall of his victimized status. Brainwashing is the only means by which Fanaticism can work. Fanatics need to be bigots, and to become a Bigot ,you need to trained how to avoid Reflective thoughts and Self-criticism. SWITCHING OFF THE MINDS is a typical trick the Fanatics exploit. The truth of life is that it is filled with up and downs meeting us alternately. Every person ,every group has been a winner , and loser at one time of their other. Every person gets his chance to be the authority wielder at some occasions and to be Victim at the other occasions. Fanaticism brews when the victimhood is brewed persistently in a

If the Indians were to write the MARPOL, STCW, SOLAS ....

The culture of Indians is of a low intelligence group, where people hold more opinions than their population. Indians, being intellectually insufficient, are not able to derive justices on issues. Therefore, they invariably always fail to make decision by logic and reason.Eventually, they resort to Populism (decision making by a populist vote) as the only method of delivering the justice. Resorting to populism: when logic and reason has failed. This behavior is analogical to : Some people say A has committed crime. Others say that he has not. "So let's decide by voting whether A has committed crimes ir not." !!!!! Instead of calling for scientific investigation, forensics etc , we Indian have the method of, first, creating a confusion scenario around a point. And then looking to untangle the confusion by calling for Vote. Perhaps, to this we may even mis-apply another fundamental tenet of "innocent until proven guilty" to help the criminal escape from clutch

कच्चे तेल के गिरते हुए दाम और इसका रूस से सम्बन्ध

धीरे धीरे ऐसा लगने लगा है की कच्चे तेल के दामों में गिरावट एक व्यापक राजनैतिक साज़िश के तहत लायी गयी हैं। मगर शायद वह राजनैतिक कारक भारत से नहीं जुड़ा है। बल्कि रूस से सम्बंधित है - जो की युक्रेन के कुछ पूर्वी हिस्सों पर कब्ज़ा करे हुए है। पश्चिमी देशों को इन राजनैतिक संकट का बड़ा सदमा मलेशिया के विमान mh17 के मिसाइल द्वारा गिराए जाने से लगा था। अमेरिका और पश्चिमी देशों का कहना है की यह विमान रूस-समर्थित युक्रेन अलगाववादियों ने मिसाइल मार कर गिराया था जबकि उनके यह मिसाइल रूस की फोजों ने मुहैया करवाई थी। विमान दुर्घटना में मारे गए यात्री अधिकाँश नीदरलैंड (एक पश्चिमी यूरोपीय देश) के थे।   उड़ान संख्या mh17 की दुर्घटना एक बेहद त्रासदीपूर्ण और व्यक्तिगत हानि थी। हाल में ऑस्ट्रेलिया में हुए G20 सम्मलेन में भी पश्चिमी देशों ने रूस के राष्ट्रपति व्लाद्मिर पुटिन से बेरूखी का व्यवहार रखा था जो की मीडिया रिपोर्ट में बराबर दर्ज हुआ है। पश्चिम देशों ने रूस के पेट्रो-डॉलर को सुखा देने की चेतावनी भी दी थी।   रूस की आर्थिक हालत एक बिगड़े हुए, भ्रष्ट , मंत्री-परस्त व्यक्तिगत पूँजीवाद (state sponsored cr