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Showing posts from October, 2014

What should be the meaning of Secularism?

Reference Article : http://www.esamskriti.com/essay-chapters/Definition-of-Secularism-1.aspx This article ( Definition of Secularism: What Hindus need to know ) , although well researched, is repeating the mistake of trying to understand SECULARISM as a legally definable entity, instead of understanding it as a socio-cultral response of the people to supremacy of priestly class and the institution of Religions , over Administration matters.    For one, it can be said about SECULARISM that it is a administrative form of Protestant cultural outrage. Secularism puts Rational Human Thinking as sole guidance for administrative actions. Secularism does not inhibit any religion, nor does it guarantee neutrality of state towards faith, if the faith conforms to the Rational Human Thought. Irreligionism is not disfavored either,by Secularism , as long as Irreligion is a Rational Human Thought, and that the irreligionism does not discard Morality.   Scientific Temper , the outcome of Rat

The fallacy of taking permission from an irrelevant authority

Some of the arguments reveal about a confusion in the minds of people related with 'Independence of Authority ' ? Examine this :-- Can the seal on overboard valve be broken merely by involving Commercial Department of the company ?? To Put this question more simply, can any operation which is doubted to be wrongful, be executed by merely involving a third party into the matter ?? Should the Iran-'Desh Shanti' like situation arise, what are the chances that the Master will be able to secure an IMMEDIATE relief for himself by pointing to the authorities that he had "involved commercial department into the affairs" ? Can the master secure a LONG TIME relief either, on the grounds of having "involved" /"taken permission" of a third party ("the commercial department" ) ?? Fundamentally, the questions reflect a confusion,a fallacy, which pertains to the INDEPENDENCE OF AUTHORITY of the master. The third party, "the commercia

क्या भाजपा छोटी रिश्वतखोरी का कारक आम जनता को बता कर बड़ी, मंत्रिपद की रिश्वतखोरी रोकने की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है ??

भ्रष्टाचार का एक ख़ास प्रकार- रिश्वतखोरी- को भाजपा वाले बहाना बना कर अपनी संवैधानिक सुधार की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे है। यह लोग इस तर्ज़ पर चल रहे हैं कि जो पकड़ा गया वोह ही चोर,और जो बच निकला वह चोर भी नहीं,और न ही कहीं कोई चोरी मानी जाएगी !    छोटे ,नौकरीपेशा लोगों के जीवन के छोटे छोटे काले कर्मों का वास्ता दे कर प्रशासन की विशाल सामाजिक उद्देश्यों में काल गुजारियों को नहीं ढका जा सकता है।   जब गडकरी की कंपनियों में निवेशकों के बारे में खुलासे हुए ,कि निवेशकों का गडकरी के मंत्रिपद पर रहने से क्या संबध स्थापित हुए, जब गडकरी की कंपनी के निर्देशकों के नाम पते के खुलासे हुए- उसके बावजूद बिना किसी स्पष्ट कारण --गडकरी जी को "साफ़" होने का प्रमाणपत्र मिलता है ,तब होंसले बढ़ते हैं इन छोटे मोटे रिश्वतखोरी के। गरीब, नौकरीशुदा आदमी को 50रुपये की रिश्वतखोरी पर 15साल झेलना पड़ता है, और बड़े नेता "साफ़-साफ़" बच निकलते हैं।     क्या छोटी, आम नागरिक और सरकारी नौकरीशुदा लोग की छोटी मोटी रिश्वतखोरी का वास्ता देकर हम सभी लोग अपने संविधान में सुधार की ज़िम्मेदारी से बच सकते है,

अंतःकरण, आदर्शवाद और बुद्धिमता गुणांक(IQ)

बिना सिद्धांतों के करी जा रही राजनीति के लिए सही शब्द कूटनीति है। कूट का अर्थ है छल, भ्रम, धोखा । आखिर कूटनीति का मानव मनोविज्ञान पर क्या असर पड़ता है?    दीर्घ अवधि में कूटनीति के प्रभाव में रहने से शायद मानव समाज की नैतिकता की व्यापक बुद्धि ही नष्ट हो जाने लगती है। गहराई में समझें तो नैतिकता की बुद्धिमत्ता का नाश कूटनीति का परिणाम नहीं बल्कि मानव स्वभाव का तरल और वातावरण के मुताबिक ढल जाने वाली क्षमता का परिणाम होता है।    जब मनुष्य बहोत लंबे काल तक अन्याय  और अनैतिकता को विजयी होते, शासन सम्बद्ध होते देखता है, तब वह उस अनैतिकता को ही उचित धर्म, नैतिकता का स्थान दे देता है। इसके लिए वह "व्यवहारिकता", "practical", जैसे न्यायोचित करने वाले शब्द विचार विकसित कर लेता है।    यह वह हालात है जब असामाजिकता का व्यवहार समाज की मर्यादा बन जाती है। रामचंद्र जी बस पूजा अर्चना का बहाना बन जाते है, जबकि वास्तविक आचरण में इनको प्रेरणा का स्रोत नहीं माना जाता है। अब पाखण्ड सफलता का मार्ग होता है।    लम्बे युगों में गुलामी और विपरीत बोधक परिस्थितियों से गुज़री भारतीय संस्कृति

Political Class has usurped all the powers in Indian Democracy

yup! thanks for this search, Rajeev Jassal, brother. Media manipulation is serious problem in India. Also, it was during this statement times when the Parliament Members shouted about how the Parliament is the supreme body in India above all else ! I made a quest into the actual answer and chanced upon the knowledge that Parliamentary powers can nevver be balanced in a political system as India - which practices DEMOCRACY alongside REPUBLICANISM !! In its origin, Parliament was a representative of the common man, as what Kejriwal described Parliament to be in relation to Anna, and was designed to balance the powers the sovereign , which is the President( 'president' is someone who preceded the "Residents".Thus, in a true democracy,  Anna Hazaare is a RESIDENT , who become equal to his PRESIDENT by the introduction of one Institution called the Parliament. Parliament is thus only a representative body, and therefore can IT CAN NEVER be ABOVE OR MORE SUPREME than who

न्यू यॉर्क टाइम्स लेख का हिंदी अनुवाद- भावनात्मक उत्तेजना से अनुवाद और उच्चारण में उत्पन्न भ्रम की घटना

प्रभावशाली अमेरिकी समाचारपत्र 'न्यू यॉर्क टाइम्स' द्वारा 8 अक्टूबर को प्रकाशित किये गए एक लेख जिसका शीर्ष था "भारतीय छात्रों के लिए एक असत्यवान शिक्षा पाठ्यक्रम" (False teachings for Indian students) का भाजपा समर्थकों ने हिंदी अनुवाद के दौरान अर्थ-का-अनर्थ कर डाला है। भाजपा समर्थकों के अनुवाद को पढ़ कर सोशल मीडिया (वह्ट्स अप्प इत्यादि) पर प्रचलित एक लघु-हास स्मरण आता है जिसमे लालू प्रसाद जी को माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक बिल गेट्स द्वारा नौकरी के लिए अस्वीकृती पत्राचार जाता है। मगर अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद में लालू जी पूरा अर्थ का अनर्थ करके उस पत्र को अपने सम्मान में प्रतिष्ठी पत्र उच्चारण में पढ़ डालते हैं।    कभी कभी मुझे लगता है की भारतियों की एक पीड़ी इसी अंग्रेजी-से-हिंदी अनुवाद में ही मानसिक रूप से कमज़ोर कर दी गयी है। भाषा सम्बंधित सक्षमता मानसिक विकास का सबसे महतवपूर्ण पहलू है। मगर अंग्रेजी बोलने और सिखाने के सामाजिक प्रतिष्ठा चलन में हम भारतीय अपने नन्हे मुन्ने बच्चों से एक भावनाहीन अंग्रेजी में बातचीत करके उनमे भाषा-संग -भावना का सम्पूर्ण विकास होने में अवरोध कर दे

स्वच्छता अभियान, भ्रष्टाचार और अस्वच्छता के संस्थागत निवारण की असफलता

जनता जब किसी सामाजिक आवश्यकता/उद्देश्य की निरंस्तर पूर्ती के लिए प्रेरित होती है, तब ही वह संस्थाओं का निर्माण प्रसाशन द्वारा करवाती है।    उदहारण के लिय शहरों और नगरों की भौतिक साफ़-सफाई का सामाजिक उद्देश्य को लीजिये।   जब गन्दगी का पारा जनता की बर्दाश्त के ऊपर चढ़ गया तब एक दिन जनता ने "प्रेरित"(असल में क्रोध से क्रियान्वित हो कर) झाडू खुद ही उठा कर साफ़ सफाई कर डाली।   पर क्या वह रोजाना ऐसा कर सकती है? क्या यह सफाई हमेशा के लिए टिकेगी?   नहीं। यदि हम रोज़ खुद ही सडकों और सार्वजनिक स्थलों को झाडू मार सकते तो पहले ही कर रहे होते,"प्रेरित" होने का इंतज़ार ही क्यों करते ??   तब फिर उस एक दिन झाडू चलाने से प्राप्त क्या हुआ,जब अगले दिन से हालात फिर से वही हो जाने हैं? यहाँ पर विचार आता है "संस्था गत" कार्य पूर्ती करने का। अब समझ में आता है कि 'संस्था' क्या है और क्यों बनाई जाती है।     किसी भी सामाजिक उद्देश्य की *निरंतर पूर्ती * के लिए कार्य को व्यक्तिगत न करके, एक संस्था द्वारा करवाया जाता है। संस्थान एक संवैधानिक अथवा विधि-विधान द्वारा निर्मित हो

Educated people and Modern politics

Success of a government in the dynamics of modern politics is most difficult to judge by stringent objective standards, unless it is clear cut pro-people policial reform which has been long pending. Countries like India have a big roll of the reforms which are long pending lying in the basement of the government complexes, eating dust. Political parties come and go, without making slightest of move on them and yet they manage to convince the people of having performed. It can happen because the people are themselves what their country needs. The political parties can, then, enjoy the powers turn-by-turn without having to bother themselves.   Education is a pathway to higher conscience, yet not a guarantee of it. Politicians manage to convince educated lot of their "vision", their "achievements", their "performance" by showcasing fulfillment of certain bureaucratic works to these Educated-but-Conscience-less people. This becomes the success of a governm

Competence or Congeniality - pick your choice ?

Competence comes at the expense of Congeniality. Competence has to dispel many of the views which come from the near and dear ones. That's in the nature of Justice. Isn't this one of the reasons why the Goddess of Justice is kept blindfolded. In the same thought, Competitive Thoughts have to transcend the barriers of mutual affection so to blossom out.   People habituated of the dual justice which they learn from local, immoral vernacular sayings such as "सांप भी मर जाये, लाठी भी न टूटे"(to achieve opposing targets in the same strike), will ofcourse not like the method and approach path of the better competence. Better competence often times makes no compromises. It makes a direct and straight hitnto kill the snake.       Therefore,  many a time people might misjudge the better Competence to be an 'inferior class' on the basis of its discongenial behavioral pattern.      But the truth of nature is that Competence has very regularly featured itself in an di